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करिश्मा साधु का

“भम-भम भोले अलखनिरंजन”। सेठ लक्ष्मी नारायण को गेट के बाहर आवाज सुनाई दी। वह बाहर आया तो देखा तो एक साधुबाबा गेट के बाहर खड़े थे।अब तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होने का वक्त आ गया है, अंदर नही बुलाओगे बालक साधुबाबा ने सेठ लक्ष्मी नारायण को देखते हुए बोले – आइये बाबा सेठ लक्ष्मी नारायण ने कहा उस समय लोग साधुओं का सम्मान करते थे। गेट खोलकर अंदर आने को कहा। अन्दर आ गये तो सेठ लक्ष्मीनारायण ने बाबा को सोफे पर बरामदे में लगे सोफे पर बिठाया। औऱ अपनी पत्नी को आवाज देकर बुलाया। भगवान कादिया तुम्हारे पास सब कुछ पर एक दुःख है तुम्हे औलाद का- साधु बाबा ने कहा। आप अन्तर्यामी है बाबा क्या औलाद का सुख मिलेगा। सेठ लक्ष्मीनारायण बोले- तब तक एक लोटे और गिलास में उसकी पत्नी पीने के लिए पानी औऱ साथ में कुछ फल भी ले आयी।उसने बाबा के चरण छुए और फिर पानी पिलाया बाबा ने पानी पिया औऱ बोले -इसलिए तो हम आये हैं बालक पर इससे पहले तुम दोनों को हमे एक बचन देना होगा। आप हमसे जो मॉगोगे हम देंगे धन दौलत —-। हम सन्यासी है बालक हमे धन दौलत का कोई मोह नहीं वह तो हम पहले ही छोड़ चुके है बहुत थी हमारे पास।बाबा बोले। फिर क्या चाहिए बाबा-? सेठ लक्ष्मीनारायण बोले। हमे अभी कुछ नहीं चाहिए बालक सिर्फ बचन दो कि जो मागेंगे वह दोगे। ठीक 10 साल बाद आयेंगे हम तुम्हारे बालक के दसवें जन्म दिन पर। जो मागेंगे उसी समय मागेंगे। तो क्या बाबा हमारे बालक पैदा होंगे तो हम क्या झूठ कह रहे हैं। हमारे कहने पर चलोगे तो एक नहीं दो बालक पैदा होंगे। पर पहले बचन दो । मै बचन देता हूँ बाबा तुम ही नही तुम्हारी पत्नी को भी देना पड़ेगा। और यह भी याद रखना बचन सोच समझकर देना।अगर बचन से मुकरोगे तो कयामत आ जायेगी। बाबा बोले। हम दोनों तन मन धन से आपको बचन देते हैं कि जो आप माँगोगे हम देगें मुकरेगें नही। सेठ लक्ष्मीनारायण और उसकी पत्नी बोले। फिर ठीक है कहकर बाबा ने एक हाथ हवा में लहराया उसमें एक बे मौसम आम प्रकट हुआ जबकि उस समय आम का कोई सीजन नहीं था। फिर बाबा ने वह आम सेठ लक्ष्मी नारायण की पत्नी को दिया और बोला-’यह आम तुम खाआगी और फिर गुठली तुम रात भर दूध में भिगोकर रखोगे और तुम- बाबा ने सेठ लक्ष्मीनारायण की ओर इशारा करते हुए कहा-सुबह उठते ही शौच क्रिया निर्वित होकर यहाँ से 50 कोस दूर राजा कौशल पुर के राज्य के बागीचे में उस बागीचे में जहां राजा की कुल देवी का मन्दिर है जो महल के आस पास ही है, जाकर इस आमकी गुठली को रात के अन्धेरे में 12 बजे अमावस्या के दिन जो कि कल है। दबाना है। ध्यान रहे दबाते समय कोई तुम्हें देखे नहीं प्रमाण का भी तुम्हें तुरन्त ही पता लग जायेगा। कहकर बाबा बिना फल खाये अंतर्ध्यान हो गये। और सेठ लक्ष्मीनारायण और उसकी पत्नी आश्चर्य चकित रह गये।

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अगले दिन शौच क्रिया से निर्वित होकर सुबह ही सेठ लक्ष्मी नारायण कौशलपुर राज्य की ओर निकल पड़े क्योंकि वहां शाम तक पहुँचना था। क्योंकि रास्ता पैदल का था उस समय गाड़ी मोटर तो थी नहीं, घोड़े बग्गी थी पर वह भी राजा महाराजाओं के लिए, फिर शाम तक सेठ लक्ष्मी नारायण कौशलपुर राज्य पहुँच ही गये। शाम तक सेठ लक्ष्मी नारायण ने बागीचे का मुआयना किया ऐसी जगह तलाश की कहां पर गुठली दबानी है,एवम जहाँ से किसी की नजर आये बेगैर अपना कार्य कर सके। आखिर उसे एक जगह मिल ही गयी वहाँ पर एक पेड़ भी था और जगह भी सुनसान थी। वह फिर चला गया वहीं पर पास ही एक होटल था समय गुजारने क़े लिए एक कमरा किराये पर लिया ऐसा कमरा लिया जिसका दरवाजा पीछे की तरफ खुलता था । ताकि वह पीछे की ओर से निकल सके। अब अंधेरा होने वाला था लगभग 8 बज गये होंगे। कुछ देर बाद उसने खाना खाया जो कि वह साथ मे लेकर चला था, उसमें से उसने कुछ खाना दोपहर को खा लिया था। अब वह 12 बजे की इंतजारी करने लगा। ठीक साढ़े ग्यारह बजे वह पीछे के कमरे से बाहर निकला और बागीचे की ओर बढ़ने लगा बागीचा भी पीछे की ओर ही था वह पेड़ के पास पहुँचा फिर की ओट लेकर जायजा लिया कोई देख तो नही रहा है। कोई नहीं था चारों ओर सन्नाटा छाया था । अंधेरा भी था क्योंकि अमावस्या की रात थी ठण्ड भी बहुत थी सन्नाटे को झिगुरों की आवाज भंग कर रही थी जुगनू भी चमक रहे थे ।ठीक 12 बजे से 5 मिनट पहले वह पेड़ की ओट से बाहर निकला और इच्छित स्थान मन्दिर के पास गया उसने जेब से चाकू निकाला औऱ गड्ढा करने लगा ।उसने फिर आम की गुठली निकाली और गड्ढ़े के अंदर डाल दी और दूध भी डाल कर गडढा मिट्टी से भर दिया और वह आश्चर्यचकित रह गया। जब उसने देखा तो तुरन्त एक छोटा पेड़ निकल आया। वह तुरन्त पीछे के रास्ते से होटल के कमरे में पहुँचा और सुबह होने की इंतजारी करने लगा अब नींद भी कोशों दूर चली गयी थी रह रहकर उसे पेड़ नजर आने लगा जो तुरन्त निकल आया था ,बाबा ने कहा था प्रमाण तुरन्त ही मिल जायेगा। सुबह होते ही सेठ लक्ष्मी नारायण अपने घर की ओर निकल पड़ा।

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और इधर कौशलपुर के राजमहल सुबह- सबेरे रानी भानुमती नहा धोकर अपनी कुलदेवी की पूजा करने केलिए बागीचे में गयी तो मन्दिर केपास बेमौसम आम का पेड़ देखकर चकित रह गयी। कल तक तो यहाँ पर कोई पेड़ नही था, रानी सोच में पड़ गयी चिन्ता का विषय था। रानी ने पहले राजा को बुलवाया राजा के आने के बाद पहले कुल देवी की पूजा की फिर आम का पेड़ दिखाया, जिस पर कि दो फूल भी निकल आये थे और उन फूलों की गन्ध मदहोश करने वाली गन्ध थी। उन्होंने मालियों से भी पूछताछ की पर कोई कुछ नहीं बता सके। माली भी चकित थे, बेमौसम फल देखकर राजा चिंतित हो उठा। पहरेदारों से पूछताछ की पर किसी को पता तो कोई बताता राजा ने फिर अपने कुल पुरोहित को बुलाया उसे सारी बात बताई। तो पुरोहित ने गणना करके कहा-घबराने की जरूरत नहीं है महाराज जो भी है अच्छा ही है,इससे यह साबित हो रहा है, महाराज कि भविष्य में आपको पुत्र या कन्या रत्न की प्रप्ति होगी। जो कि आप काफी समय से चाह रहे थे। फिर सारे कौशलपुर में उस विचित्र पेड़ की खबर पहुँच गयी। जिसकी सुगन्ध भी दूर-दूर तक फैल रही थी। राजा ने ढिंढ़ोरा पिटवाया कि जो कोई इस विचित्र पेड़ के विषय मे बतायेगा उसे उचित इनाम दिया जायेगा। और फिर तीन दिन बाद फूलों की जगह आम लटक गये। इससे राजा रानी हैरान हो गये।बेमौसम आम फिर सातवें दिन राज दरबार में एक साधु दाखिल हुआ। पहरेदार ने सूचना दी कि महाराज कोई साधुबाबा आपसे मिलना चाहते हैं। उसे आदर सहित हमारे पास ले आओ। उस समय लोग साधु बाबाओं का भक्त आदर करते थे। राजा ने भी आदर सहित बाबा को बिठाया,राजा ने साधु बाबा के चरण छुए।साधु बाबा प्रसन्न होगये। राजा ने साधु बाबा पर नजर डाली तो सोचने के।।लगा साधु बाबा को उसने कहीं देखा है पर याद नहीं आरहा था यह साधु वही साधु था जो सेठ लक्ष्मीनारायण के पास गया था और उसे आम दिया था। राजा ने खाने पीने से लेकर साधु बाबा की पुरी आवभगत की। कहो बालक कुछ चाहते हो। नहीं बाबा भगवान का दिया सब कुछ है।राजा बोले-पर कुछ तो है तुम्हारे मन मे। क्या तुम्हें अपने बागीचे में उगने वाले पेड़ के विषय मे नहीं जानना चाहोगे। साधुबाबा बोले। क्यों नहीं बाबा। राजा बोले। इसलिए हम यहाँ आये है। वह पेड़ बहुत ही लाभकारी है और भविष्य मे भी आने वाली पीढ़ी के लिये भी लाभदायक रहेगा। साधुबाबा ने राजा की ओर देखते हुए मुस्कराते हुए कहा। वह कैसे बाबा, राजा बोला। हम पेड़ के विषय मे बताते है उससे पहले हमें तुम्हें बचन देना होगा जो हम मागेंगे वह तुमको हमें देना पड़ेगा।पर बिना मांगे हम बचन—--। मूर्ख हो तुम साधुबाबा ने उसकी बात काट कर कहा– हम तुमसे तुम्हारा राज पाट नहीं माग रहे। वैसे भी हम तुमसे अभी कुछ नहीं मांगेंगे।तुम तो अभी से घबरागये राजन।पर हम तुम्हें बता देते हैं कि तुम्हारी कोई संतान नहीं है क्यों मै ठीक कह रहा हूं न। हाँ बाबा।राजा बोला। तो फिर सुनो आज से ठीक एक माह बाद जो पेड़ बागीचे में है आम का वह फल जो दो होंगे पक जायेंगे उन्हें तोड़कर एक फल तुम्हें और एक रानी को खाना होगा। ध्यान रहे तुमको उन फलों की पूरी हिफाजत करनी है,और फल किसी और को मत दे दे ना या कोई दूसरा न ले ले। एक साल के अंदर तुम्हें दो सुन्दर कन्या रत्न की प्राप्ति होगी और भविष्य में जो भी फलखायेगे उन्हें सन्तान की प्राप्ति होगी। अब तो बचन देने में कोई संकोच तो नही है राजन। मै बचन देता हूँ बाबा। मुकरोगे तो नहीं। नहीँ बाबा। फिर ठीक है । पर एक बात का ध्यान रखना 10 साल बाद एक कन्या तुमसे बिछुड़ सकती है। साधु बाबा बोले। क्या?- पर बाबा इसका कोई उपाय नहीं। होनी कौन टाल सकता है।बाबा बोले मै फिर आऊँगा । कन्या के जन्म दिन के ठीक 10 साल बाद। भम-भम भोले अलखनिरंजन कहते हुए बाबा अन्तर्ध्यान हो गये।

इधर साधु बाबा की कृपा से ठीक एक माह बाद सेठ लक्ष्मीनारयण के दो जुड़वा पुत्र हुए एक ही कद- काठी यहाँ तक कि एक ही शक्ल सूरत की थे उनके नाम उन्होंने रखे रामनारायण और सत्यनारायण पुत्र होने की खुशी में उन्होंने सारे शहर को निमंत्रण दिया और मिठाइयां बांटी। तथा गरीबों को भी भोजन कराया। क्योंकि जो औलाद का दुःख था वह साधु महाराज की कृपा से दूर हो गया। सेठानी जो औलाद के दुःख से चिंतित और कमजोर थी अब ठीक हो गयी। समय बीतने के साथ साथ सेठानी का मन बच्चों में रमने लगा। कहते हैं जो भी खाता है अपने भाग्य का खाता है। सेठ का कार्य दोनों बालकों की बजह से अब और अच्छा चलने लगा। इधर कौशलपुर राजमहल में भी धीरे धीरे एक माह बीत गये आम के पेड़ के फल भी पक गये। दोनोँ राजा रानी दोनो ने एक एक फल खाया बेमौसमी फल बहुत सुंदर और स्वादिष्ट थे। फिर एक साल बीत जाने पर उनकी दो पुत्रियाँ प्राप्त हुयी।जिनका नाम उन्होंने कौशल्या एवं सत्यवती रखा। दोनों काफी खूबसूरत थी । पुत्रियों को पाकर राजा रानी को बहुत खुशी हुई । धीरे धीरे समय बीतने के लगा और राजकुमारियां चलने लगी और राजा ने उनकी शिक्षा दीक्षा का प्रबंध राजमहल में ही कर दिया था। क्योकि साधुबाबा ने 5 साल बाद कन्या बिछुड़ने के विषय में जो बताया था। पर कन्या नहीं बिछुड़ी फिर धीरे धीरे 10 साल बीत गये।और इधर कौशल पुर के राजा को स्वप्न में साधु बाबा की आवाज सुनायी दी हम कल आ रहे है 10 साल बाद अपना बचन याद है न राजन्न अपने बचन से मुकर मत जाना वर्ना—। हम कल रहे हैं। और फिर राजा की नींद खुल गयी। राजा ने अपना स्वप्न रानी कह सुनाया। दोनो सोचने लगे बाबा क्या माँगते है चलो कल ही देखते है देना तो पड़ेगा बचन भी तो दे दिया है। पर दोनों चिन्ता में डूब गये।

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भम भम भोले सेठ लक्ष्मीनारायण को ठीक साधु बाबा की आवाज सुनायी दी अपना बचन याद है न बच्चा हम कल आयेंगे कुछ मॉगने। घबरा मत जाना दिल सख्त करलो।हाँ बाबा याद है क्या देना है,बाबा आप बोलिये आपके लिये जान हाजिर है। तुम्हारे बालक 10 साल के हो गये हमें उनमें से एक बालक एक चाहिए। नही—------ बड़ी जोर से चीख पड़ा लक्ष्मी नारायण। औऱ बगल में सोयी सेठानी। लक्ष्मी नारायण को चीखते घबरा गयी उसने सेठ को हिलाया तब सेठ लक्ष्मी नारायण चौंक कर उठा । उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थी। अपने पिता की चीख सुनकर बच्चे भी उठकर वहां आगये थे क्या हुआ पिताजी बच्चे भी बोले आप डर गये। सेठ लक्ष्मी नारायण ने घड़ी पर समय देखा तो 4 बज रहे थे तो सपना देख रहा था, सेठानी और बच्चों के पूछने पर उसे चलचित्र की तरह याद आगया उसने बताया कि कैसे उसने बाबा को देखा कि बाबा दोनों में से एक बच्चा मांग रहा है। बाबा ने बचन भी याद दिलाया। सेठ लक्ष्मी नारायण और सेठानी को याद आ गया 10 साल पहले का बचन अब क्या होगा जी अगर साधुबाबा ने बच्चे मांग लिये तो अभी तो बच्चे छोटेहैं । क्या पिताजी आपहमें किसी को देंगे ।एक बालक बोला हम क्यों जायेंगे किसी के साथ पर आपने हम से बैगर बचन कैसे दिया बताओ न पिताजी हमें भी तो बताओ। फिर सेठ लक्ष्मी नारायण ने शुरू से लेकर राजा कौशलपुर तक उनके जन्म की कथा सुना दी। और सोच पूर्ण मुद्रा में आँखो आँखो आपस मे सलाह मशवरा करने लगे। सेठ लक्ष्मी नारायण का बाबा को दिया बचन निभाना था। क्या सेठ लक्ष्मी नारायण अपना बचन निभा सके ।क्या सेठ का सपना सच हुआ। क्या बाबा सेठ लक्ष्मी नारायण के एक बेटे को ले गया। उसने उस बेटे का क्या किया। बाबा ने उससे सेठ लक्ष्मी नारायण से कहा था, उसे धन दौलत का मोह नहीं पहले बहुत थी उनके पास क्या दौलत थी बाबा के पास कहां गयी बाबा की दौलत कौन था साधुबाबा क्या वह कौशलपुर भी गया राजा से बचन माँगने क्या माँगा बाबा ने राजा से।क्या राजा ने भी अपना बचन निभाया आगे जानने के लिये पढ़े दूसरा भाग रहस्य और रोमांच से भरपूर जादू नगरी।

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धन्यवाद

✍️ Written By मोहन देव पाण्डेय