प्रस्तुत कहानी बल्कि अगर इसको उपन्यास का रंग देना पड़ेगा क्योंकि उक्त प्लाट कहानी में नहीं समा पायेगा यह वह कहानी है जो जीवन मरण के सँघर्ष की कहानी कभी-कभी इंसान जैसे किसी के हाथों की कठपुतली हो। जिसमे मेहनत, सँघर्ष करते हुए बीत जाता है सारा समय पर हाथ कुछ नहीं आता जोभी इंसान चाहता वह उसे मिलता ही नहीं पर फिर भी जिंदगी जीने के लिये कुछ न कुछ मिल ही जाता है उसे कुछ जिसे उसे जीने के लिये ग्रहण करना ही पड़ता है मजबूरी है अब तो लोग यहां तक कहते हैं महात्मा गाँधी का दूसरा नाम मजबूरी है हाँ तो मै कह रहा था जब भूख लगती है तब कुछ मिलता नहीं जब भूख नहीं तो सब कुछ मिल जाता है या यूँ भी कह सकते है जब जीवन की अन्तिम सीमा में अगर मिला तो वह बेकार ही हुआ यही है मेरे एक कभी महिला मित्र ने कहा उस समय जब गरीबी थी जब किसी चीजों को खाने का मन करता था उस समय मिलता नहीं था क्योंकि धन नही था तो मिलता कैसे और अब धन है तो खाया नहीं जाता क्योंकि अब बीमारियों ने घेर लिया है और हमारा शरीर इसकी इजाजत नहीं देता।
कहानी जैसे हमारे इन्टरट्रीटमेंट के लिये एक सफल डाइरेक्टर फिल्में बनाता है जिसमे हीरो, हीरोइन एवं अन्य करेक्टरों को क्या क्या मुसीबतें झेलनी पड़ती है। भले ही बाद में कुछ में अच्छा कहीं ख़राब दिखा कर कहानी अथवा पिक्चर समाप्त हो जाती है यही सब हमारे साथ होता है हमारे शब्दों अपने ख्यालों की खिचड़ी हर कोई पकाता है पर पाता वही है जो किस्मत में लाता है। जोहोई है जो राम रचि राखा । पर साथ में यह भी कहा है। कर्म किये जा फल की इच्छा मत करे इंसान यह है गीता का ज्ञान । और जिसको चाहने भर से सब कुछ मिल जाता है उसके लिये लोग कहते है इसने बहुत मेहनत करी इस मुकाम तक पहुँचने के लिये पर लोग नहीं जानते की उसने क्या खोया है तब तक वह बूढ़ा भी हो गया। कुछ लोग लगन और मेहनत से या कहो कि अपनी किस्मतको हराकर जल्दी ही मुकाम पर पहुँचने वाले थे पर वाह रे किस्मत उसे जल्दी ही ऊपर वाले डायरेक्टर ने उसे उठा दिया या इस मुकाम पर पहुँचने के लिए शादीशुदा जिंदगी भी नहीं जी पाता और न वह सिर्फ धन के लिये या फिर दुसरों के लिये जीता है। अपनी इच्छा भी पूरी नहीं करपाता। और उसे भी तरह तरह की बिमारियां घेर लेती हैं। जिस प्रकार की फ़िल्म वाला डायरेक्टर या यूं कहो हमारे जैसा कहानी कार उसे मार डालता है फिर कहते हैं कि इतनी ही जिन्दगी ऊपर से लिखकर लाया था और गलत कार्य से मर गया तो कहते है कि कर्म खराब थे मरना तो था ही रावण भी तो अपने पापों से मरा था। पर मैं नहीं मानता इसे कि उसके कर्म खराब थे क्योंकि यह एक डायरेक्टर की कहानी हो या ऊपर वाले डारेक्टर की जिसने अगर नारद मोह कहानी या फिर विष्णु भगवान के पहरेदारों जय बिजय की कहानी पड़ी हो किस तरह उन्हें 3 जन्मो तक राकच्छस होने का श्राप मिला तो यह और उस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान से बैर बढ़ाया तो श्राप के लिये ऊपर वाले डायरेक्टर ने जय और विजय की कहानी को इस प्रकार आगे बढ़ाई क्योंकि वह भगवान के नास्तिक रूप में भक्त थे त्रेतायुग में रावण कुम्भकर्ण तथा अन्य युग तीन जन्मो तक भगवान से मुक्ति पाने के लिए दुश्मनी निभाई अन्य राकछस हिरण्यकश्यप, कंस कहानी कार ने उक्त कहानी को आगे अपने हिसाब से बनाई । एक ओर भीष्म पितामह और कर्ण की भी खेलों का भी यही हाल रहा डायरेक्टर के हिसाब से ही बन रही है ये कहानी या उपन्यास प्रस्तुत की जाएगी जिसका नाम होगा हारा हुआ जुआरी अगर दूसरा भाग होगा खेलडायरेक्टर का अगर उक्त कथानक पसन्द आयेगा औऱ इस लिखने के लिए प्रेरित करेंगे तो आगे कथानक लिखा जायेगा औऱ नहीं भी पसन्द आये तो बताइयेगा जरूर देखते कौन कौन प्रेरित करता जीवन के अंतिम चरणों मे (हारा हुआ जुआरी/खेल डाइरेक्टर का।)