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खेल किस्मत का

अपने ख्यालों की खिचड़ी हर कोई पकाता है पर पाता वही है,जो किस्मत में लाता है । “छम-छमा-छम-छन-छना-छन, छमक छमक तोरी बाजे पायलिया, तकधिना-धिन,तकधिना-धिन।” गीतों के स्वर, घुँघरुओं की छमछमाहट सारंगी और तपले की धुन के साथ-साथ चम्पा बाई के पैर फर्श पर थिरक रहे थे। सामने ओर चम्पा बाई के चाहने वाले दौलतमंद, ऐय्याशी, एवं वासनाओं के पुजारियों जो कि गाव (तकिया) के उपर कोहनी टिकाये हुए साथ में जामो की चुस्कियाँ ले रहे थे। तथा उसकी हर अदा पर अलंकार की भांति सुशोभित “वाह-वाह” कहकर नोट पर नोट बिछाकर बिखेर दिये पर चम्पा बाई ने अपने ऊपर मंडराते हुए भोरों पर एक मुस्कान भरी नजर डालकर अपना नृत्य करती रही। * ----------------------------* चम्पा बाई–जिसकी हर अदा कातिल थी,जिसकी हर अदा कातिल थी। भुखे-भेड़िये उसकी हर अदा पर आहें भरते। नाचते-नाचते, यदा-कदा जब कभी उनके समीप गुजरती, ऐसा प्रतीत होता कि उनके दिल की धड़कनें बन्द हो जाएंगी। कुछ सफेदपोश लोग जो बाहर से शरीफ और अंदर से भेड़िये नजर आने वाले थे। चम्पा बाई को पाने के लिए लालायित रहते जैसे वह फूल को मसल देना चाहते हो, लेकिन चम्पा बाई जैसे फूल को पाना इतना कठिन था, जैसे गुलाब के फूल को पाने के लिये काँटो के साथ लड़ना पड़ता या फिर यूँ कहो कि कीचड़ में खिले कमल के फूल के समान क्योंकि जो कोई भी भौंरा कमल का रस पीना चाहता,तो कमल उसे अपनी पंखड़ियों में इस तरह बन्द कर देता तो बाहर उसकी मौत ही उसको बाहर निकाल सकती या फिर उसे कमल को पाने के लिए दलदल में उतारना पड़ता।लोग उसे पाने के लिए इतने लालायित रहते, उसे पाने के लिए चाहे कितना धन क्यों न खर्च करना पड़े। पर जब तक चम्पा बाई की मर्जी के बगैर कुछ नही हो सकता था। पर यह साँपकी बाम्बी में हाथ डालने के बराबर था। चम्पा बाई के यहाँ उसके चाहने वालों की भीड़ लगी रहती थी भी तो कमल, गुलाब के फूल के समान, गोरा रंग लंबी सी नाक चम्पा बाई थी भी तो काफी खूबसूरत, लोग उसके खूबसूरत नृत्य एवं अदा को देखने के लिये उसके कोठे पर आते थे नृत्य के मामले ने उसने और कोठों को पीछे छोड़ दिया था,नाचते गाते उसकी साँसो के उतार चड़ाव के साथ- साथ उसके कसे हुए ब्लाउज से दो खूबसूरत जन्नत बाहर निकलने का प्रयत्न करते तो वहां बैठे मनचले लोग उन्हें छूने का प्रयत्न करते पर चम्पाबाई उन्हें ऐसा मौका नहीं देती कि वह उसके जिस्म को छू सके। शराफ़त के पुतले चम्पा बाई के जिस्म पर नोट फेंकते तो ऐसा लगता कि मन -मंदिर की देवी पर फूल बरस रहे हों।पर चम्पा बाई उन नोटों को उठाती नहीं थी,लोग आनन्दित होते जरूर पर वे जानते थे चम्पा बाई उनको नहीं मिल पायेगी पर उनको चैन जरूर मिल जाता वे सन्तुष्ट होकर ही घर जाते थे।

चम्पा बाई भी नृत्य करते-करते किसी विशेष ब्यक्ति की आँखो में झांकने की कोशिश करती औऱ पहचानती कि कौन ऐसा सफेदपोश वासना का पुजारी जो दौलत मंद है। उसके हाथ मे एक गुलाब का फूल पकड़ा देती। करीब करीब लोग फूल पकड़ाने का मतलब जानते थे, इसका मतलब था आज रात तुम चम्पा बाई के मेहमान हो। ऐसा संकेत मिलने पर वह ब्यक्ति रुक जाता उसकी आँखों की चमक दुगनी हो जाती, जबकि अन्य लोग ईर्ष्या करने लगते। नृत्य धीरे-धीरे रुक गया और चम्पा बाई ने गुलाब का फूल सेठ किशोरी लाल की ओर बड़ा दिया सभी लोग उससे ईर्ष्या करने लगे। आदाब-कहकर चम्पा बाई ने सबको विदा किया। सेठ किशोरी लाल को छोड़कर सभी चले गये। मेरे लिए क्या हुक्म है- सेठ किशोरीलाल ने कहा। आपको एक हफ्ते इंतजार करना पड़ेगा। इस बीच आप किसी से नही मिलेंगे और नही किसी को आज की बात बताएंगे। एक हफ्ते बाद आपको होटल ताज में कमरा न0 420 आपको अपने नाम से बुक कराना पड़ेगा। करा दूँगा चम्पा जी, पर एक हफ्ते बाद क्यों। सेठ किशोरी लाल की आंखे चमक उठी। यह सब सीक्रेट है। बताया नहीं जाता अब आप जासकते है अगर चाहो तो आराम भी फरमा सकते हो। चम्पाबाई बोली। नहीं मैं चलता हूँ। किशोरी लाल चला गया। तो वहां पर एक लड़की ने कदम रखा। उसने सारे रुपये इकट्ठे कर तिज़ोरी में रख दिये और चाबी चम्पा बाई को दे दी । फिर चम्पा कपड़े बदलने अपने कमरे में चल दी कपड़े बदलने के बाद चम्पा बाई ने मेज पर रखी घंटी पर हाथ मारा और अपने आप सोफे पर बैठ गयी अब वह एक मासूम सी गुड़िया लग रही थी।अब एक लड़की ने कदम रखा, लीजिये मैडम जिसके एक हाथ में चाय की एक ट्रे थी। उसने ट्रे मेज पर रखकर चाय बनाने लगी एक उसने चम्पा को दी और एक खुद पीने लगीअबमेरे लिए क्या हुक्म मैडम? जिसने चम्पा को चाय दी थी बोली। शिकार मैने फाँस लिया है किशोरी लाल नाम है उसका पहले उसकी पूरी छान-बीन करो उसके बाद मुझे रिपोर्ट दो उसके बाद ही आगे की कार्यवाही करेंगे, ओके बिन्दु। चम्पाबाई उस लड़की से बोली जिसका नाम बिन्दु था अब मै थोड़ा आराम करना चाहती हूँ । बिंदु दिखने में मासूम लग रही थी पर थी बहुत ही खतरनाक लड़की जुड़ो कराटे की एक्सपर्ट। चम्पाबाई का दिखने का कोठा था पर था पूरी बिल्डिंग ही उसकी थी जो अन्य कोठे थे भी वह भी काफी दूर जो उसके आसपास थे सब उसने ख़रीद लिये थे और कुछ उसके साथ मिल गये। बिल्डिंग के नीचे तहखाने भी थे। पर किसी को कुछ पता नहीं उसके सिर्फ़ खास लोगों के अलावा किसी को कुछ पता नही।

✍️ Written By मोहन देव पाण्डेय