बहुत समय पहले की बात है, एक राज्य था त्रिशंकु पुर वहां का राजा बड़ा विद्वान और बड़ा ज्ञानी था पर राजा को इस बात का घमण्ड नहीं था बल्कि वह अपने आपको ज्ञानियो से तुच्छ समझता था। उसका नाम था, काली चरण कालीदास की तरह वह भी काली का भक्त था। उसकी पत्नी का नाम था लजावती। उन्हें दुःख था इस बात का था कि उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने कई यज्ञ कराये पर सन्तान नहीं हो पायी। एक दिन काली मायी ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिये और बोली। कण्डव वन में एक पीपल का पेड़ है। वहाँ अपनी पत्नी को लेकर जाओ उसके नीचे एक साधु बाबा बैठकर तपस्या कर रहे हैं वह तुम्हें सब कुछ बता देंगे। राजा रानी काण्डव वन को गये। काफी दूर चलने के बाद वह उस जगह पहुँच गये जहाँ पीपल का पेड़ था। पीपल के पेड़ पर उन्होंने एक जटाधारी साधु बाबा को तपस्या करते देखा जो कि ध्यान में मग्न थे। राजा रानी साधु-बाबा के पास पास में गये और साधु बाबा के चरण छुए,और हाथ जोड़ आँखें बंद कर कर वहीं पर नीचे बैठ गये। कुछ ही देर में दो पीपल के पत्तों की गिरने की आवाज आयी आवाज ऐसी थी जैसे कोई मनुष्य पेड़ से गिरा हो उन्होंने आँखे खोलकर ऊपर देखा तो वहाँ कोई नहीं था। पीपल के पत्ते जमीन पर पड़े थे तब उन्हें आवाज सुनायी दी। हे राजन तुम पीपल के इन दोनों पत्तों को पीसकर दूध के साथ मिलाकर तुम दोनों पी जाना शीघ्र ही तुम्हारी सन्तान की मनोकामना पूर्ण होगी। और जब उन्होंने देखा तो हैरान रह गये। जैसे कोई स्वप्न देख रहे हो। साधुबाबा वहाँ से अदृश्य थे। उन्होंने पत्तों को उठाया और पेड़ पर अपना सिर झुकाया जहाँ पर साधु बाबा बैठे थे। फिर घर पहुँचकर राजा रानी ने पत्ते पीसकर दूध के साथ पिया और फिर एक साल बाद उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम उन्होंने महेंद्र नाथ रखा। फिर धीरे धीरे महेंद्र नाथ बड़ा हो गया अब वह 21 वर्ष का हो गया तो राजा रानी को उसके विवाह की भी चिन्ता हो गयी। उससे काफी दूर एक राज्य था, भगवानपुर उसके राजा का नाम था। सुरेन्द्रराय उसकी एक लड़की थी अंजनवती वह बहुत गुणवंती रूपवती थी। उसका स्वभाव भी बहुत अच्छा था। वह भी सत्रह बसन्त पार कर चुकी थी अब राजा को उसके विवाह की भी चिन्ता हो गयी। बहुत दूर दूर से योग्य वर आये पर राजा को कोई पसन्द नहीं आये जो अंजनवती की टक्कर का हो। जो साथ साथ उसके राज्य को भी सम्भाल सके क्योंकि राजा का कोई पुत्र नहीं था वैसे राजा ने 16 वर्ष में इतने गुण भर दिये थे कि वह राज्य को चला सके। अब उसने अपनी बेटी से बातकर एक स्वंयवर रचा की जो बिना हथियार मदिरा पीये हाथी को मार गिरायेगा उसके साथ वह राजकुमारी की शादी करेंगे। उसने यह न्योता कई राज्यों में दिया। यह न्योता राजा कालीचरण तक पहुँचा वैसे सुरेन्द्रराय राजा कालीचरण के विषय मे जानता था उसने अपने बेटे महेन्द्रनाथ के साथ लाने के लिये आमंत्रित किया। तो राजा कालीचरण अपने बेटे को लेकर प्रतियोगिता के लिये भगवान पुर राज्य की ओर चल पड़े। वैसे राजकुमारी अंजनवती ने राजा कालीचरण और उसके पुत्र राजकुमार महेन्द्रनाथ के विषय मे बहुत कुछ सुना। पर देखा नहीं था। अब देखने का सौभाग्य मिल रहा था जब काली चरण और राज कुमार महल में पधारे तो राजा ने उनकी आवभगत की। राजा और राजकुमारी ने जब राजा के पुत्र महेन्द्रनाथ को देखा तो अफसोस करने लगे। पर तीर कमान से निकल चुका था अब तो प्रतिज्ञा भी कर चुके थे न्योता दिया जा चुका था। राजकुमारी को तो महेन्द्रनाथ पसन्द आ चुका था। उसने एक बार पिता से इस विषय में बात की और राजकुमार से मिलने की इच्छा प्रकट की। राजा ने कुछ सोचा वह राजा काली चरण से मिला और दोनों को अलग से मिलने की मंजूरी दी। दोनों आपस मे मिले । राजकुमारी बोली क्या आप प्रतियोगिता जीत लेंगे ।पता नहीं ये तो में अभी नही बता सकता प्रतियोगिता में अभी 3 दिन बाकी हैं। सोचना पड़ेगा। क्या मैं तुन्हें पसन्द हूँ। राजकुमारी बेबाक राजकुमार से बोली। हाँ चाहने से क्या होता है, आपने तो प्रतिज्ञा रखी है। और राजकुमार भी तो होगें प्रतियोगिता में। महेंन्द्रनाथ बोला। पर मुझे नहीं लगता है कि कोई शर्त पूरी करेगा। राजकुमारी बोली । फिर तो कैसे होगा स्वंयवर फिर आप क्या करेंगी। मैं आपको पसन्द करने लगी हूँ । मै आपको तरकीब देती हूँ। आप कुछ ले आओ कहकर उसने उसके कान में कुछ फुसफुसायी ताकि कोई सुन न ले। उसने हामी भर ली। राज कुमारी चली गयी महेंन्द्रनाथ आवक रह गया। उसने सारी बात अपने पिता को बता दी। उसके पिता खुश हो गये। महेंद्र नाथ ने एक चक्कर घूमने के लिये जंगल के लिए पड़ा।उसके हाथ मे एक शीशी थी। कुछ देर बाद वह राजहल की ओर चल पड़ा। उसके ओंठों में मुस्कराहट थी। फिर तीसरे दिन एक बड़े से राज मैदान में दरबार लगा था उसमें कई राजा लोग आये जो बैठे थे एक ओर मदमस्त हाथी जिसका अपना एरिया था। सभी राजा लोग गये राजकुमार तो वहाँ नजर ही नहीं आ रहे थे। हाथी के सामने किसी की नहीं चल रही थी बल्कि हाथी उन पर भारी पड़ रहा था कुछ राजा तो खाली तमाशा देखने आये थे अब हाथी भी थक चुका था । अब महेंन्द्रनाथ मैदान में आया पहले उसने जायजा लिया। और गणेश भगवान की एक तस्वीर हाथी के मुँह के आगे रख दी। हाथी तस्वीर देखने मे मस्त हो गया तबतक महेंन्द्रनाथ ने एक बड़ी सी उछाल बार कर हाथी की पीठ पर बैठ गया, जैसे हाथी को इल्म हुआ उसने अपनी सूँड ऊपर की और यही पल था महेंन्द्रनाथ के पास उसने तुरन्त शीशी का ढकन खोला शीशी हाथी की सूँड में उंडेल दी। बहुत सारी चींटिया उसकी सूँड में चली गयी और हाथी बड़ी जोर से चिंघाड़ा पर महेंन्द्रनाथ ने उसे कसके पकड़ा था। वह छटपटाया। फिर वह गिरा और बेहोश हो गया। इस प्रकार उसने हाथी को मारा भी नहीं और हाथी पर काबू पा लिया । इस प्रकार राजकुमारी चतुराई से राज कुमार महेंन्द्रनाथ ने जंग जीत ली। चारों ओर तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी और फिर राजकुमारी ने अपनी बुद्धिमत्ता से महेंन्द्रनाथ से शादी कर दी । और दोनों राजा गले मिले उनके बूढ़े होने पर दोनों राज्य आपस मे विलय हो गये। फिर दोनो अंजनवती और महेंन्द्रनाथ राज करने लगे ।
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