यह कहानी मेरे बचपन के समय की लिखी जो मैने नये साल के पहले महीने यानी की 1 जनवरी सन्न 1982 से शुरुआत की थी।यह कहानी ब्लेक ब्यूटी क्वीन की है जो काली थी पर उसके नयन-नक्श अति सुन्दर थे मैं आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूँ और आप भी पसन्द आये तो लाइक कमेंट शेयर करते रहियेगा। यह कहानी उस समय की है जब एक दिन कई समय बाद मुझे मेरा एक दोस्त जिसका नाम बिजय था, मिला बातों- बातों में उसने मुझे वह कहानी बतायी जिसका मुझे आज तक पता नहीं था , वही कहानी जिसका नाम मैं ब्लेक क्वीन भी रख सकता था, मै आपके साथ शेयर कर रहा हूं । इसलिए कर रहा हूं कि जब मेरे दोस्त की पत्नी इस कहानी का पता है,मेरे दोस्त ने बताया कि एक दिन मेरी पत्नी अपने बनाये नये मकान में गये तो सामान लगाते बक्त तो उसके दोस्त की पत्नी की नजर एक फ्रेम पर पड़ी, जिसके अंदर एक रुमाल जड़ा, हुआ था।ये क्या है जी-? वह बोली - कुछ नही, बस ऐसे ही मैने टालना चाहा । पर वह तो पीछे ही पड़ गयी। दरसल उसमें नाम भी जड़ा था, कौन है यह सुनीता, उसने देख लिया था, अब तक उसे पता भी नही था, उसने कभी इस ओर ध्यान दिया था या मैने कहीं सम्भाल कर रखा होगा पर जब वह पीछे पड़ गयी तो मुझे अपनी पत्नि को बताना ही पड़ा।बैठो बताने में टाइम लगेगा ध्यान से सुनना, मैं अपनी पत्नी से बोला- बात उन दिनों की है। तुम भी ध्यान से सुनो लेखक हो कभी छापना हो तो छाप सकते हो। उसने मुझे छापने की अनुमति भी दे दी।
फिर बोला हाँ तो मैं कहाँ था, सुनो ।बात उन दिनों की है जब मैं घर मेअकेलाथा, सारे परिवार वाले माँ बाप भाई बहिन गर्मियों की छुट्टियों में यात्रा में घूमने गये थे ,मेरा मन घूमने का नही था, फिर घर मे भी तो किसी को रहना था। उस समय चोरी भी बहुत होती थी। मै घर पर ही रह गया। मै उस समय किसी जान-पहचान के जिन्हें में भाभीजी और उनके को पति को भाईजी जी कहकर पुकारता था। वह किसी फार्म में कार्य करते थे। और फार्म के कार्य से दो तीन के लिए बाहर गये थे। शाम का समय था उनके यहाँ बैठा था जून का महीना था आकाश में हल्के-हल्के बादल छाये हुए थे मै और भाभीजी आपस मे हंसी मजाक कर रहे थे। उनका एक बेटा था, जिसे वह लोग प्यार से ब्यूटी कहकर पुकारते थे। लगभग 8 साल का था समय काटने के लिए हम ताश खेलने लगे। मौसी जी नमस्ते-। सहसा दरवाजे की ओर से मुझे अपने कानों में सुरीला स्वर सुनाई दिया, भाभी जी ने पीछे मुड़कर देखा - मेरी आँखे भी स्वत: सामने की ओर उठ गई, और बेपलक देखती रह गयी, हाथ में काला ब्रीफ केश थामे एक लम्बी सी काले रंग की नव-यौवना खड़ी थी बड़ी-बड़ी आँखे जिनमें बड़ी खूबसूरती से काजल लगा हुआ था,उसके सुतवां काली सी नाक,पतले-पतलेओंठ, जब वह बोली तो उसके काले सुंदर चेहरे पर सफेद दन्त पंक्ति मोती की माला ऐसे चमक रही थी जैसे कि काले बादलों के बीच बिजली चमक उठी। आकर्षक शरीर पर क्रीम कलर की मैक्सी जमीन को छू रही थी। सुन्नी तुम-? भाभीजी ने पीछे मुड़कर देखते हुए बोली। घर में सब ठीक-ठाक हैं न-। हाँ मौसी सभी ठीक हैं,कहते हुए उसने भाभीजी के पैर छुये । और ब्रीफकेश एक ओर रखकर झिझकते हुए मेरी बगल की कुर्सी पर बैठ गयी। भाभी की बगल की कुर्सी पर उनका बेटा ब्यूटी बैठा था, जो दीदी कह कर नीचे उतर गया औऱ उसके पैर छुए जिसके बदले उसने हाथ बढ़ाकर प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा । फिर उसने मेरी ओर देखकर मेरी ओर नमस्ते की। जैसे मेरा परिचय जानना चाहती हो। मैं आपको एक बात बता देना चाहता हूं कि मैं लड़कियों के मामले में परहेज रखता हूँ। जिस कारण मैने उसकी नमस्ते का जबाब नहीं दिया । उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे नमस्ते का उत्तर न देकर उसका अपमान किया हो। भाई साहब-नमस्ते,उसने दोनों हाथ जोड़कर फिर से मुझेनमस्तेकी।नमस्ते,मुझेकहनापड़ा। . अब उसने मेरी ओर देखा -आपका परिचय- वह बोली, यह मेरे देवर है,पर मेरे बेटे जैसा है पडोस में ही रहता है। और यही के निवासी हैं, और यह है मेरी बड़ी बहन की बेटी नाम है सुनीता,प्यार से हम सुन्नी कहते हैं। भाभीजी ने आपस मे मेरा और उसका परिचय कराते हुए कहा- । सोच रहा था विधाता भी कितना अन्यायी है - इतने सुन्दर उसके नयन-नक्श खूबसूरत, आकर्षक चेहरा, सुडौल शरीर पर विधाता ने उसे श्याम वर्ण में रंग दिया। खैर –बिधाता जाने - क्या उसकी इच्छा रही होगी । बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर,वह काली कलूटी लड़की बोली। मुझे भी- मैने कहा। फिर हर ब्यक्ति प्रथम मिलन में ऐसा ही बोलता है। जब आप यहीं के निवासी है, मै तो पिछली बार भी यहाँ आई थी, जबकि मै एक माह तक मौसी के यहाँ रही पर आप नजर नही आये-उसने मुस्कराते हुए कहा-कहते हुए उसके काले-काले गालों पर गड्ढ़े पड़ गये। मै पिछली गर्मियों मैं शिमला का आनन्द ले रहा था, फिर भाभीजी नआपका जिक्र भी नही किया कभी, अच्छा मै चलता हूँ, आप लोग बातें कीजिये, मैंने ख़ड़े होते हुऐ भाभीजी की ओर देखकर कहा। बैठो देवर जी, अभी तो आये हो, मै तब तक ठंडा बनाकर लाती हूं तब तक सुन्नी के साथ बातें करो। भाभीजी बोली । नहीं मै। अरे बैठो न मुझे भी तो ताश सिखाइये । पहली बार मिल रहे हो कुछ बातें भी करो। उसने मेरा हाथ पकड़ कर नीचे बिठाया। मजबूरन मुझे बैठना पड़ा। भाभीजी चाय बनाने चली गयी, ब्यूटी भी उनके पीछे चला गया। समय काटने के लिए ताश अच्छा शौक है, सभी खेल आते होगें आपको–। कहते हुए वह मेरे सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी,और वहाँ पर पड़ी ताश समेट कर फेटने लगी। मैने कोई उत्तर नहीं दिया, कौन सा खेल खेलेगें आप - कहते हुए उसका पैर मेरे ऊपर पड़ गया उसने सेंडिल पहनी थी,मैने एक सिसकारी ली, और बोला-ओह आपने मेरा पैर -। क्या किसी ने काट खाया, वह मुस्कराते हुए बोली। मुझे लगा लड़की पागल है, पैर भी दबा रही है, और कह रही है, किसने काटा है, शायद उसकी इच्छा हँसी मजाक करने को थी। मैंने भी व्यंग्यात्मक शब्दों में कहा- एक काली चींटी ने काट खाया। वह भी शायद समझ गयी थी। आप भी मेरा मजाक…..? वह कुछ कहती तब तक भाभी जूस के दो गिलास ले आयीऔर मेज पर रख दिये। मैं नहीँ पियूँगा। अभी तो आपने……। क्या मेरा साथ देने के लिए नही पियेंगे आप…। उसने मेरे शब्दों को काटकर कहा– पीलो, अब तो मै लेआई। फिर सुन्नी का साथ भी तो देना है,- कहकर भाभी चली गयी। उसने एक गिलास उठाकर मुझे दिया और एक खुद लेकर एक ही सांस में पी गयी। में धीरे-धीरे चुस्कियां लेने लगा। तो आपका नाम सुनीता है- क्या आप ज्योतिषाचार्य है जो आपने मेरा नाम बता दिया उसने ठीक मेरे बिपरीत प्रसन्न किया। बैठे-बैठे मेरा नाम भी बता दिया। आप नही बताना चाहती थी, इसलिए सुन्नी शब्द से अनुमान लगाया ,अब तो पता लग गया आपको पर अपना नाम क्यो छिपाना चाहते हो कहकर वह मुस्करायी। विजय- मैने अपना नाम बता दिया। बहुत अच्छा नाम है आपका । विजय अर्थात जीत किस- किस का दिल जीता हैआपनेअब तक। उसने मजाकिया शब्दों में मुस्कराते हुए कहा- नाम तो आपका भी अच्छा है सुनीता जी मैने कहा-। वह कुछ कहती तक भाभी चाय की ट्रे ले आयी उसमें बिस्कुट भुने हुए काजू थे। मैंने दोनों गिलास हटा दिये भाभी ने ट्रे मेज पर रख कर चाय देने लगी ब्यूटी भी पीछे आ गया।आप चाय क्यों ले आयी मौसी बड़ी गर्मी है, सुन्नी बोली-आसमान पर बादल छा गए है सफर से आयी हो ,चाय पीकर सारी थकान मिट जायगी- भाभी बोली। सफर की बजह से गर्मी लग रही है आपको-मैने कहा। फिर हम सबने चाय पी इस बीच कोई कुछ नहीं बोला। क्या बाजार नहीं चलोगी मौसी- चाय नाश्ता करने के बाद सुनीता ने सन्नाटा भंग करते हुए कहा।मुझे तो आज समय नही है कल चलेंगे । अगर जरूरी है तो विजय के साथ चली जाओ। नही भाभी मुझे भी तो टाइम नहीं- मौसी भी नही जा रही है आप ही चलिए न विजय जी —उसने मेंरा नाम लेकर कहा- चले जाओ न देवर जी। भाभी बोली- भाभी लोग और मेरे दोस्त,—-। मेरे मुँह से छूट पड़ा। में ये नही चाहता था कि कल जानने वाले औऱ दोस्त आदि बोलेंगे कि किस लड़की के साथ घूम रहा था।लोगों की बात छोड़ो विजय दिल साफ है तो बोलते रहेंगे क्या मैं तुम्हें जानती नहीं। कहकर भाभी बर्तन लेकर कीचन में चली गई मै असमंजस में फंस गया सुनीता मेरे दिल की बात समझ गयी। क्या सोच रहे हो विजय जी,जाने का इरादा नही है क्या-?उसने कहा– मै सोच रहा था कि—--। आपकी इच्छा, वह नाराजगी भरे शब्दों में बोली,आपका साथ होता तो बात कुछ और होती। रहने दो मै भी नहीं जाती। मैने उसे नाराज करना उचित नहीं समझा। ठीक है चलिये,-मै बोला। सच! उसके काले चेहरे पर मुस्कान उभरी जिससे उसके दोनों तरफ के गालों पर गड्ढ़े उभर आये– पर हम बाजार नही जाएंगे- मैंने कहा।
ठीक है मैं तैयार होकर आती हूं-। कहकर उसने अपना ब्रीफकेश उठाया और दूसरे कमरे में चली गयी। मैं सोच रहा था कि क्या मुसीबत गले पड़ गयी पांच मिनट बाद वह चेंज करके आ गई, इस समय उसने काला चूड़ीदार पैजामा और सफेद कुर्ता पहना था, तभी तो वह जल्दी तैयार हो गयी थी, उसके गोलाकार ढंग से कटे हुए थे जो कि काफी खूबसूरत लग रही थी, वह काली थी , पर सुंदर थी ऐसे लग रही थी जैसे ब्यूटी ब्लेक क्वीन का खिताब जीता हो। मै उसकी ओर देखता रह गया ,चलिए- भाभी से इजाजत लेकर हम रानी महल की ओर घूमने निकल गये बाजार भीनहीं था पर इधर जानने वाले भी नही थे, बाजार क्यो नही गए आप वह बोली- इसलिए की कई जानने वाले मिलेगें- फिर मुझे बार बार आपका परिचय कराना पड़ेगा आपका भी समय खराब होगा । आपकी मौसी होती तो मै आपको उनके साथ छोड़कर जा सकता था, मैने स्पष्ट लहजे में कहा- मैं उसे घुमाने लगा रानी महल- उसमे लगा तालाब में फब्बारा, था जो रानी महल की शोभा बढ़ा रहे थे, फिर आगे चलकर वहां हम पिकनिक स्पाट पहुच गए वहाँ पर रानी महल की तरफ जाता हुआ पानी तथा बागीचे भी पिकनिक स्पाट की शोभा बढ़ा रहे थे, जहाँ लोग थे पर ना के बराबर जहां थोड़ी बहुत दुकाने थी,उसने अपने मतलब का सामान खरीदा । फिर हम एक छोटे से होटल में गये। क्या लोगी- मै बोला जो आप खिलाएंगे मैने उसे टिक्की और आमलेट का ऑर्डर दिया और साथ मे काफी, आपने मेरी पसंद जान ली ।फिर थोड़ी देर में नाश्ता आ गया। हमने शुरू किया फिर कुछ देर बाद में काफी भी आ गयी। चलो शुरू हो जाओ, मैने काफी की ओर हाथ बड़ाया- इतनी भी जल्दी क्या है,वह बोली- टाइम हो गया है मै बोला। काफी पीने के दौरान कोई कुछ नहीं बोला, उसके बाद मेने अपना रुमाल हाथ साफ करने के लिए निकाला, मेने हाथ साफ किये थे कि उसने मेरे हाथों से रुमाल खींच लिया और मेरे रुमाल से हाथ साफ करते हुए रुमाल अपने पर्स में रख दिया।पहले कभी आई हैं आप यहाँ । नही - कौन लाता मौसी को फुर्सत ही नहीं मिलती वैसे बहुत सुंदर जगह दिखाई है आपने। ओर बोली -क्या फ़िल्म का शौक रखते है आप - ? कौन सी फ़िल्म लगी है यहां । ले चलेंगे आप ? उसने एक ही बार मे सब कह दिया मै इंकार न कर सका पर बोला घर भी तो नहीं ।बताया।अभी बता देते है वह बोली मौसी को भी बोल देती हूं। पर आपको भी तो जाना होगा घर,- नहीं, घर मे कोई नहीं है आजकल, ठीक है फिर फ़िल्म चलते हैं। फिर मैंने बिल चुकाया,औऱ भाभी से इजाजत लेकर फ़िल्म चले गये भाभी को बोला पर भाभी नहीं गयी । फिर 9 बजे शो छुटा तो घर आ गये, खाना भी मैंने भाभीजी के घर में ही खाया।
फिर हम मैं सुनीता और भाभी गप्पें मारते रहें। ब्यूटी सो गया था।टाइम का भी पता नहीं चला,कब 12 बज गए। मै 1 बजे घर पहुँचा और रात भर सो नहीं सका। सोच रहा था मेरे रुमाल में ऐसा क्या था, जो सुनीता ने रख लिया था। फिर सोचा धोकर देगी शायद बहुत देर बाद नींद आयी । ओर मुझे पता ही नहीं लगा कि मैं कब सोया मैं तब उठा जब खट-खट की आवाज मेरे कानों पर पड़ी - शायद कोई दस्तक दे रहा था, दरवाजा खोलकर देखा तो दरवाजे पर ब्यूटी खड़ा था, समय देखा तो सुबह के 10 बजे रहे थे तब भी आंखे नींद से अलसाई हुई थी। अंकल आपको दीदी बुला रही है बहुत देर से दस्तक दे रहा हूँ। कौन दीदी, मैंने भारी आवाज में कहा नींद अभी हाबी थी। भूल गये सुनीता दीदी को। अब मुझे रात की बात याद आ गयी। अच्छा तुम जाओ मैं आता हूँ। ब्यूटी चला गया और मैं बेगैर लॉक करे बिना सो गया। फिर एक घण्टे बाद मुझे लगा कि कोई मेरे कन्धों को हिला रहा है। फिर आवाज आयी विजय जी- विजय जी।चेहरे को थपथपाने वाली वह काली सी ब्यूटी क्वीन सुनीता थी।।अरे जनाब 12 बज गये हैं। मै चोंका-12 बज गये। हांजी जनाब वह ऐसे बोली जब तुम नहीं आये तो मुझे खुद आना पड़ा ब्यूटी के साथ , उसे मैने घर भेज दिया। और खुद चोरों की तरह घुस गयी दरवाजा खुला था। उठो उसने मुझे हाथ पकड़कर उठाया, औऱ वह मेरी बगल में बैठ गयी अब मुझे उठना पड़ा इस समय मै उसे देखता रहगया। इस तरह क्या देख रहे है आप, -? उसने मुस्कराकर मेरी ओर देखकर कहा,जिससे उसके दोनों गालों में गढ्ढे पड़ गये। काफी अच्छी लग रही हैं आप- मैने उसकी तारीफ करते हुए कहा । सच- अपनी तारीफ सुनकर वह शर्मा सी गयी,पर बोली मै कहां काली—-। मैं उसके कहने का अर्थ समझ गया और बोला–रंग से क्या होता है,आप सचमुच सुंदर लग रही हो जैसे ब्यूटी क्वीन का खिताब जीता हो। अच्छा मै फ्रेश होकर अभी आता हूं। तब तक तुम बैठो-,कहकर मै बाथरुम में घुस गया। 20 मिनट में निपट वापस आ गया, बहुत जल्दी निपट गये। चाय नहीं पिलाओगे बिजय, उसने बेबाक होकर कहा। मै अभी बनाकर लाता हूँ ,मै अंदर गया तो देखा चाय तो बनी हुई रखी थी, मेरे पीछे सुनीता भी आ गयी बोली-चाय मैने बना दी, तब तक मै क्या करती सोचा चाय बना लेती हूँ।जब तक आप बाथरुम से आते हो।उसने मुस्कराते हुए कहा- जिससे उसके दोनों गालों में गड्ढ़े पड़ गए। क्या रात को नींद नहीं आई जो इतनी देर में सोकर उठे। आपका अनुमान ठीक है,। मैने कहा-। मुझे भी नहीं आयी, बिजय उसने कहा। में तुम्हें—---। उसने अधूरे शब्द छोड़कर वह लजा सी गयी।। मै कुछ नही बोला, फ्रिज से अंडे निकाले औऱ आमलेट बनाने लगा मेरे लिए मत बनाना वह बोली- क्यों,खाती नहीं हो क्या ? मैने जान बुझकर कहा- मै नाश्ता करके आई हूँ, कल तो खाया था मैने सिर्फ थोड़ा सा फ़िर मैने चाय गर्म की फिर वहीँ पर हम दोनों ने नाश्ता करते रहे। अब उसका चेहरा उदास सा हो गया, मै कल जारही हूँ विजय कहते हुए उसकी आँखो दे दो बूंद आंसू छलक उसने मेरे दिए गये रुमाल से आँखे साफ की।पर इतनी जल्दी क्यो कल ही तो आयी हो मैंने कहा पापा का टेलीग्राम आया तुरन्त पहुँचों सोच रही हूँ , आज का दिन तुम्हारे साथ गुजार लू ।फिर शायद मुलाकात हो न हो। आज घूमने चलोगे-न मै इन्कार न कर सका। और बोला- जब जा रही हो तो चलना ही पड़ेगा मना कैसे कर सकता हूँ मैंने कहा- फिर उसने अपना पर्स खोला अपना रुमाल निकाला मझे दिया यह मेरा रुमाल तुम रख लो तुम्हारा रुमाल मै रख रही हूं यादगार के तौर पर रख रही हूँ वापस नहीं दूंगी। कहकर उसने अपना रुमाल मझे दिया, जिस पर सुनीता नाम गड़ा था। इसकी क्या जरूरत मै बोला- जनाब ये मै यादगार के तौर पर तुम्हें देर ही हूँ , इस बहाने मुझे भूलोगे तो नही, सम्भाल कर रखियेगा।तुम्हारा रुमाल भी मुझे हर वक्त तुम्हारी याद दिलाता रहेगा विजय। यह मेरे पास तुम्हारी याद के रूप में रहेगा कहकर वह सिसक उठी। फिर मै तैयार हो गया। उसकी मौसी से इजाजत लेकर मै उसे नई जगहों पर घुमाने ले गया खाना हमने बाहर ही खाया, मौसी ने कहा था जल्दी आना उन्हें भी बाजार जाना था सुनीता के लिए कुछ खरीदने के लिए। 4 बजे तक हम वापस भी आ गए। फिर वह भाभी के साथ बाजार को चली गयी,भाभी औऱ सुनीता ने चलने को कहा पर मै नहीं गया। थकान भी लग गयी थी शाम को मै वहां गया तो वह अपना सामान पैक कर ही थी । तैयारी हो गयीं रात को भाभी ने कहा तुम्हारे भैया तो आये नहीं तुमने सुबह आकर मेरे साथ सुन्नी को छोड़ने मेरे साथ बस अड्डे चलना है । भूलना मत 8 बजे तक आ जाना 9 बजे की बस है जो डाइरेक्ट जाती है । रात का खाना आज भी मैंने वही खाया। वह भी खुश हो गयी। कि मै उसे छोड़ने आऊँगा। याद करके आना उसने भी कहा मै अपने घर वापस आगया रात को 10 बज गयी थी । हर मनुष्य जो जिससे काफी धुल-मिल गया हो।बिछुड़ने पर दुख होता है। दिल तो नहीं चाहता है कि दूर जाएं पर मजबूरी भीं तो होती है। सुनीता दो दिन मेरे इतने पास आ गयी थी कि उससे बिछोह की कल्पना मुझे असह्य लग रही थी मुझसे ज्यादा तो सुनीता को लग रहा था रात मैंने काट ली, फिर सुबह दरवाज़ा खटखटाने की आवाज आयी मैने दरवाजा खोला तो सुनीता को पाया मुझे छोड़ने को चल रहे हो न बिजय वह मुझसे कुछ ज्यादा आस लगाये बैठी थी- क्यो नहीं में बोला- मौसी के सामने तो बात नहीं हो पाएगी इसलिये में यहाँ आगयी। मुस्कराते हुए उसने नम आंखों से मुझे देखते हुए बोली- क्या तुम मुझे याद करोगे-?
दो दिन में मैं तुमसे इतना घुल-मिल गयी विजय कि तुम्हारा तो मुझे पता नहीं पर मुझे तुम्हारी याद आती रहेगी। फिर मिलना हो या न हो। किस तरह मैने रात गुजारी मै ही जानती हूं। मैने अल्प समय मे तुमसे जो अपनत्व पाया है वह मुझे जीवन भर याद रहेगा। । अच्छा जल्दी आना चलती हूँ- कहकर वह भावुक होकर चली गयी। फिर मै फ्रेस होकर मै उनके साथ बस अड्डे तक गया उसकी आँखे बार-बार पानी से भीग उठती। जिसे वह मेरे रुमाल से साफ कर देती आंखे तो भाभी की भी भीगी हुई थी एक बार वह भाभी के सीने से लग कर रोने लगी, फिर उसने भाभी के चरण छुए औऱ मेरे भी छूने लगी। मैने कंधे पकड़कर उसे उठा कर बस में खिड़की की सीट पर बिठा दिया।टिकट में पहले ही ले चुका था। में उतरा वह फिर भीगी आँसू से मुझे देखने लगी जाते समय हाथ तो मिलाओ। उसने अपना हाथ बढ़ाया।मुझे भी बड़ाना पड़ा।फिर बेमन से बस से उतरा ।खिडकी की साइड गया जहाँ भाभी खड़ी थी बस चलने लगी।वह मेरा रुमाल हाथ मे पकड़े हाथ हिलाती रही। मै भाभी भी तब तक हाथ हिलाते रहे।जब तक बस आँखों से ओझल नहीं गयी। फिर हम घर लौट आ गये ।मुझे ऐसा लग रहा था कि मै थक गया हूँ मै।घर आकर मै फिर सो गया।बहुत दिन तक मेरे मन मष्तिष्क में सुनीता छायी रही । कुछ दिन बाद मेरे घर वाले भी आ गये। फिर मै अपने दोस्त के साथ बाहर घूमने के लिये निकल पड़ा। जब भी मै कभी किसी काली कलूटी लड़की को देखता तो मुझे सुनीता की याद आ जाती थी । दो माह बाद मैं वापस आया तो अपनी भाभी को मिला। तो भाभी बोली कहां थे इतने दिन बता कर भी नहीं गये । क्यो क्या हुआ भाभी-? मै बोला-लो मिठाई खाओ - सुनीता की शादी की।भाभी बोली-।मै हक्का -बक्का रह गया ,इसकी तो मुझे उम्मीद भी नही थी। शादी! मैं आश्रयचकित रह गया आपने मुझे बताया भी नही भाभी-?। कहां से बताती देवरजी।हम भी तो कल ही आये है। 15 दिन पहले आते तो साथ चलते बेचारी बहुत याद कर रही थी तुम्हें की बिजय क्यों नहीं आया ।कार्ड भी दिया था तुम्हें। तभी तो वह पहले गयी थी। उसे सगाई के लिए बुलाया था अब बात कुछ समय में आगयी थी तभी बोली फिर मिले या न मिले। भले ही मुझे उससे कोई मतलब नहीं था, वह काली कलूटी थी, मुझे वह शब्द अब याद आरहे थे जो उसने मुझे कहा था मैं तुम्हारा तो मुझे पता नहीं पर मुझे तुम्हारी याद आती रहेगी। इसलिए उसने मेरा रुमाल लिया था, शायद वह मुझे चाहने लगी थी कुछ समय लगाव के नाते मुझे वह आती रही । फिर धिरे,-धिरे मै उसे भूल गया । हाँ उसका रुमाल मैंने एक फ्रेम में जड़ दिया। उसके बाद हम दूसरे शहर चले गये उसके बाद तुमसे मेरी शादी हो गई। यह है,इस फ्रेम की कहानी। अब हम इस घर जो हमारा अपना घर है , चाहो तो फ्रेम रख सकती हो चाहो तो फेंक सकती हो, जैसे तुम्हारी इच्छा। यह है मेरे दोस्त मेरी कहानी सुनने के बाद मेरी पत्नी ने मेरा मान रखा और न रखती तो शायद मेरा दिल भी टूट जाता। और यादगार के तौर पर एक कमरे में वह रुमाल वाला फ्रेम टांग दिया।
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कहानी कैसे लगी शेयर कीजियेगा एवम कमेंट द्वारा जरूर बताइयेगा। यह कहानी पूर्णतयः काल्पनिक है किसी ब्यक्ति विशेष से मिलती हो तो मात्र इसे संयोग समझा जायेगा।